Seva Aur Dete Samarthya Bhi
सेवा भी देते और सामर्थ्य भी... एक दिन जनार्दन स्वामी ने एकनाथजी को नींद से जगाते हुए कहा : ''उठो बेटा ! आज गुरुवार है, आज का दिन सदगुरु-स्मरण में व्यतीत करना । मैं तुम्हें लेकर शूलभंजन पर्वत पर चलता हूँ। मेरे गुरुजी की मौज हुई तो आज तुमको भी उनके दर्शन हो जायेंगे।" एकनाथजी को साथ में ले जाते हुए रास्ते में जनार्दन स्वामी बोले : ''बेटा ! तुम्हारे लिए मैंने एक सेवा खोज रखी है। भागवत ग्रंथ को आम लोगों तक पहुँचाने के लिए इस महान ग्रंथ का मराठी में अनुवाद करना है।" एकनाथजी बोले : ''मैं तो अभी छोटा हूँ और पूर्णता को भी नहीं पाया। मैं कैसे कर सकता हूँ?" "अभी नहीं करना है। जैसे ज्ञानेश्वरजी ने तपस्या की उसी प्रकार तपस्या करके यह काम तुम्हें ही करना है। इसके लिए तुम्हें जो शक्ति चाहिए वह मेरे सद्गुरुदेव देंगे। इसीलिए तो मैं तुम्हें ऊपर पहाड़ी पर उनके पास ले जा रहा हूँ।" एकनाथजी : ''गुरुदेव ! मुझे उनका दर्शन होगा ?" जनार्दन स्वामी : "वे तो किसी भी रूप में प्रकट हो सकते हैं। अगर तुम उनको पहचान लोगे तो वे तुमको मूल स्वरूप में दर्...